भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के पूर्व गवर्नर उर्जित पटेल ने खुलासा किया है कि जब वह आरबीआई गवर्नर थे, तब उनसे क्या असहमत थे। सरकार ने तब दिवालिया कानून के नियमों में ढील देने का आदेश दिया था, जिसके बारे में पटेल तैयार नहीं थे। पटेल ने शुक्रवार को अपने पुस्तक विमोचन समारोह के अवसर पर यह जानकारी दी।
उर्जित पटेल ने कहा कि आरबीआई ने 12 फरवरी, 2018 को एक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें कर्ज में डूबी कंपनियों को दिवालिया घोषित किया गया था। सर्कुलर में बैंकों को निर्देश दिया गया था कि वे उन कर्जदारों को तुरंत बकाया की सूची में रखें, जो अपने कर्ज को नहीं चुका सकते हैं। सर्कुलर में यह भी कहा गया है कि किसी कंपनी के प्रमोटर्स जो कर्ज में डूब जाते हैं, दिवालिया होने की कार्यवाही के दौरान कंपनी की हिस्सेदारी वापस नहीं खरीद पाएंगे। सरकार इस बात से सहमत नहीं थी । इसके बाद, आरबीआई गवर्नर के सरकार के साथ मतभेद शुरू हो गए। पटेल ने कहा, “तब तक, वित्त मंत्री और मेरी एक ही राय थी।” हालांकि, इस सर्कुलर के बाद सरकार और आरबीआई अलग हो गए।
12 फरवरी 2018 के परिपत्र में क्या था
आरबीआई ने परिपत्र में कहा था कि बैंकों को ऋण चुकाने में किसी भी देरी के मामले में रिज़ॉल्यूशन प्रक्रिया शुरू करने के लिए कहा है। उन्हें 180 दिनों के भीतर मामले को सुलझाने के लिए भी कहा गया था। सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 2 अप्रैल को इस सर्कुलर को खारिज कर दिया था। 7 जून, 2019 को रिज़र्व बैंक ने यह सर्कुलर जारी किया था। इसमें बैंकों को अटके हुए ऋणों की पहचान और रिपोर्ट करनी होगी और एक निश्चित समय सीमा के भीतर कार्रवाई करनी होगी।